रामायण में भरत का चरित्र यह सिखाता है। राम को वनवास हो गया और राज्य भरत को मिला। राम की भी आज्ञा थी और पिता दशरथ की भी कि भरत अयोध्या के राजा बनकर राज्य चलाएं लेकिन भरत ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इस बात पर गहराई से विचार किया कि भले ही अयोध्या का राजा बनना उनके लिए धर्म सम्मत है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे। उन्होंने राजा बनना स्वीकार नहीं किया। अपने उस कर्तव्य को महत्व दिया जो उनका राम के प्रति था।
वे राज्य लौटाने के लिए राम को खोजने वन में गए। पूरे समाज और खुद राम की आज्ञा होने के बाद भी वे अपने कर्तव्य से नहीं डिगे। इसी कारण आज भी भरत को धर्मात्मा भरत कहा जाता है। सिर्फ कर्तव्य के चयन से ही भरत ने पूरे विश्व में ख्याति अर्जित की।
वे राज्य लौटाने के लिए राम को खोजने वन में गए। पूरे समाज और खुद राम की आज्ञा होने के बाद भी वे अपने कर्तव्य से नहीं डिगे। इसी कारण आज भी भरत को धर्मात्मा भरत कहा जाता है। सिर्फ कर्तव्य के चयन से ही भरत ने पूरे विश्व में ख्याति अर्जित की।
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