Saturday, November 5, 2011

jai hind

महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है !!

ख़ुशी ग़म से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हॅसने वालों को भी आखि़र रोना पड़ता है !!

अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख्वाबों की ख़ातिर सोना पड़ता है !!

मैं जिन लोगो से खुद को मुख़तलिफ़ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है !!

किसे आवाज़ दें यादों के तपते रेगज़ारों में
यहॉ तो अपना-अपना बोझ खुद ही ढोना पड़ता है !!
!~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~!

कागजों पर मुफलिसी के मोर्चे सर हो गए,
और कहने के लिए हालात बेहतर हो गए !!

प्यास के शिद्दत के मारों की अजियत देखिये ,
खुश्क आखों में नदी के ख्वाब पत्थर हो गए

ज़र्रा ज़र्रा खौफ में है गोशा गोशा जल रहे,
अब के मौसम के न जाने कैसे तेवर हो गए !!

सबके सब सुलझा रहे हैं आसमाँ की गुत्थियां,
मस'अले सारे ज़मी के हाशिये पर हो गए !!

फूल अब करने लगे हैं खुदकुशी का फैसला,
बाग़ के हालात देखो कितने बदतर हो गए !!
!~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~!

No comments:

Post a Comment